Hindi motivational kahaniya ये कहानी है एक लकड़हारे की. वह लकड़हारा जो सत्तर साल का हो गया है, लकड़ियां ढोते—ढोते जिंदगी बीत गयी, कई बार सोचा कि मर क्यों न जाऊं! कई बार परमात्मा से प्रार्थना की कि हे प्रभु, मेरी मौत क्यों नहीं भेज देता, आखिर क्या है इस जीवन में! रोज लकड़ी कांटना, रोज लकड़ी बेचना, थक गया हूं!
किसी तरह रोजी—रोटी जुटा पाता हूं। फिर भी पूरा पेट नहीं भरता। एक दिन की मिल जाए तो बहुत। कभी—कभी दोनों दिन भी उपवास हो जाता है। कभी बारिश ज्यादा दिन हो जाती है, तो लकड़ी नहीं कांटने जा पाता। अब तो बूढ़ा भी हो गया हूं कभी बीमार हो जाता हूं, और लकड़ी कांटने से मिलता ही कितना है!
एक दिन लौट रहा था थका—मादा, खांसता—खंखारता, अपने गट्ठर को लिये और बीच में एकदम उसे लगा कि अब बिलकुल बेकार है, मेरा जीवन यह मैं क्यों ढो रहा हूं! उसने गट्ठर नीचे पटक दिया, आकाश की तरफ हाथ जोड़कर कहा कि मृत्यु, तू सब को आती है तो मुझे क्यों नहीं आती! हे यमदूत, तुम मुझे क्या भूल ही गये हो, उठा लो अब!
इत्तेफाक की बात है, ऐसा अक्सर तो होता नहीं, उस दिन हो गया, यमदूत पास से ही गुजर रहे थे—किसी को लेने जा रहे होंगे.सोचा कि बड़ा दुखी हो कर कोई बुला रहा है, तो यमदूत लकड़हारे के पास गए और उन्होंने उसके कंधे पर हाथ रखा बोले क्या भाई, क्या काम है? बूढ़े लकड़हारे ने देखा, मौत सामने खड़ी है, प्राण कंप गये!
कई दफे जिंदगी में बुलायी थी मौत—बुलाने का एक मजा है, जब तक आए न। अब जब मौत सामने खड़ी थी तो दिल कांप गया, भूल ही गया मरने की बातें। बोला, कुछ नहीं, कुछ नहीं, मेरा गट्ठर नीचे गिर गया है। यहां कोई उठाने वाला न दिखा इसलिए आपको बुलाया, जरा उठा दें और नमस्कार, कोई और जरूरत नहीं है!
ऐसे तो हम जिंदगीभर कहते रहे, मुझे मरना नहीं है। आप सिर्फ मेरा गट्ठर उठाकर मेरे सिर पर रख दें। जिस गट्ठर से परेशान था, उसी को यमदूत से उठवाकर सिर पर रख लिया। उस दिन उसकी चाल देखते जब वह घर की तरफ आया! जवान हो गया था फिर से, बड़ा प्रसन्न था। बड़ा प्रसन्न था कि बच गये मौत से। मौत को सामने देखकर जीने की इच्छा दुगनी हो जाती है। “